Live Akhbar Desk-Garima
पिछले बार की तरह ही इस बार भी किसी व्यक्ति विशेष को शांति का नोबेल पुरस्कार ना देकर एक विश्व संगठित संघ को पुरस्कार के लिए चयनित किया गया। इस कार्यक्रम के तहत दुनिया में भुखमरी जैसी गंभीर समस्या से निपटने की दिशा में सराहनीय और उल्लेखनीय काम किया गया है।
डब्ल्यूएफपी को नोबेल प्राइज मिलने की वजह: नॉर्वे की नोबेल कमेटी ने जब पुरस्कार की घोषणा की तो पूरे विश्व को डब्ल्यूएफपी द्वारा मानवता के लिए किए गए अमूल्य प्रयास का पता चला। इसी सोच और कर्म ने उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार का हकदार बनाया। इस संघ ने कई युद्ध, गृह युद्ध और अन्य कई सैन्य संघर्ष में यह सुनिश्चित किया कि कोई भुखमरी का शिकार ना हो। इस संस्था ने ना केवल समस्या से लड़ाई लड़ी बल्कि कई लोगों को इस शांति भरे प्रयासों का हिस्सा भी बनाया।
डब्ल्यूएफपी और भारत का संबंध: हम सब को यह जानकर खुशी होगी कि भारत देश और यूएन की इस एजेंसी का एक गहरा संबंध है। भारत सरकार और वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने मिलकर कई ऐसे कदम उठाए हैं जिससे यहां बहुत से कार्यक्रम हुए और इससे हमारे देश में भी कई संकटों के दौरान हमें मदद मिली। अन्नपूर्णा कार्यक्रम चलाया, वितरण प्रणाली में सुधार के साथ-साथ राइस एटीएम जैसा अनोखा काम भी किया गया।आम लोगों के घरों तक अनाज पहुंचे इसके लिए डिलीवरी व्यवस्था भी की गई। फ्री राशन योजना सही मायनों में सही लोगों तक पहुंच रहा है या नहीं इसका भी ख्याल रखा गया। भारत में डब्ल्यूएफपी के प्रतिनिधित्व करते बीशो पसजूली ने कहा कि कोविड-19 संकट के दौरान तीन कार्य किया जाना महत्वपूर्ण था। लोगों तक भोजन और पोषण की डिलीवरी का सुनिश्चित तौर से ख्याल रखना हमारी प्राथमिकता थी।
भारत में डब्ल्यूएफपी द्वारा किए गए कार्य: जानकारियों से हमें पता चलता है कि डब्ल्यूएफपी इंडिया ने दिसंबर 2018 के महीने में वाराणसी शहर में एक कार्यक्रम के अंतर्गत 4145 मीट्रिक टन चावल करीब 3 लाख स्कूली बच्चों तक पहुंचाया था। यूपी राज्य के तकरीबन 18 ज़िलों में पूरक पोषण उत्पादन इकाईयों की स्थापना की गई। यह कदम उत्तर प्रदेश आजीविका मिशन और वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के साथ हुए समझौते के अंतर्गत किया गया। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और कर्नाटक में स्वचालित अनाज वितरण की मशीनों की स्थापना हुई। इसके जरिए 25 किलोग्राम चावल 1:30 मिनट में निकल सकता है।
और कौन था नोबेल पीस प्राइज की सूची में?
इस रेस में प्रथम स्थान पर विश्व स्वास्थ्य संगठन था और न्यूजीलैंड की पीएम जेसिका और अॉर्डर्न भी थीं। कोविड-19 संकट के दौरान कई परिस्थितियों में समझदारी और मजबूती के साथ फैसले लेने और चर्च में हुए आतंकी हमलों के मामले में भी कदम उठाने के लिए उनका नाम इस पुरस्कार के लिए भेजा गया था।14 वर्षीय ग्रेटा थनबर्ग जो स्वीडन में एक पर्यावरण कार्यकर्ता हैं, उनका नाम भी भेजा गया था।
वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम 2021 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भेजा गया है।
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