Garima- Liveakhbar desk
आज पूरा देश गांधी के आदर्शों को याद कर उन्हें नमन कर रहा है।2 अक्टूबर मात्र एक दिन ही नहीं, यह एक उत्सव है जिसे भारत गांधी जयन्ती के रूप में मनाया जाता है। बच्चे-बच्चे के ज़ुबाँ पर आज उनका नाम है और उनके प्रयास के बदौलत हम स्वतंत्र हवा में सांस लेने का सौभाग्य रखते हैं।
इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश वासियों को इसकी बधाई दी और साथ ही उनकी सोच पर आगे बढ़ने की अपील भी की। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने भी गांधी समाधी पर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
जन्म व परिवार: मोहनदास का जन्म आज के ही दिन 1869 को पोरबंदर में एक गुजराती मोध बनिया परिवार में हुआ था। वह करमचंद और पुतलीबाई की चौथी संतान थे।उनके जीवन पर श्रवण व हरिश्चंद्र की कहानियों का गहरा प्रभाव पड़ा था।
शिक्षा: 9 साल की उम्र में स्कूली शिक्षा में प्रवेश किया और कुछ सालों के बाद स्नातक की डिग्री लेने के लिए कॉलेज में प्रवेश लिया किन्तु वह लन्दन कानून की पढाई के लोए रवाना हो गए और बाद में दक्षिण अफ्रीका बैरिस्टरी करने चले गए।
स्वतंत्रता में योगदान

1915 में भारत लौटने के बाद उन्होंने को जगहों पर सत्याग्रह आंदोलन चलाया। 1917 में उन्होने ने बिहार के चंपारण इलाके का दौरा किया और दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ किसानों को प्रेरित किया।
इसके बाद उन्होंने गुजरात के खेड़ा ज़िले के किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह किया। इसी प्रकार का आंदोलन 1918 में अहमदाबाद के सूती कपडा कारखानों के मज़दूरों के लिए किया। इस कामयाबी से उत्साहित गांधीजी ने 1919 में प्रस्तावित रॉलेट एक्ट के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आंदोलन चलाया। हिंदुओं और मुसलमानों को एक ही छत के नीचे लाने और ज्यादा जनाधार वाला आंदोलन के लिए खिलाफत समिति का गठन किया। 1921में असहयोग और खिलाफत आंदोलन के साथ ही स्वदेशी आंदोलन ने भी अपना रूप ले लिया। गांधीजी के आह्वान पर समाज के कई लोगों ने इसमें हिस्सा लिया। परंतु चौरी चौरा में हिंसक विद्रोह के कारण उन्होंने यह आंदोलन फरवरी 1922 में वापस ले लिया।देश को एकजुट करने के लिए गांधीजी को नमक एक शक्तिशाली प्रतीक दिखाई दिया। फिर क्या था, 12 मार्च 1930 को उन्होंने अपने विश्वस्त साथियों के साथ नमक यात्रा, यानी दांडी मार्च शुरू की जो साबरमती आश्रम से 240 कि.मी दूर दांडी तक थी। वहां समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाया और नमक कानून को तोड़ दिया। यहीं से शुरुआत हुई सविनय अवज्ञा आंदोलन की जो 1934 तक अपना प्रभाव खो चुकी थी। तत्पश्चात उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की और ‘करो या मरो’ का नारा दिया।
जहाँ अंग्रेजों को प्रताड़नाएं बढ़ती ही जा रही थी, बापू उन पर अहिंसा की तलवार से वार कर उनकी हर कोशिशों को नाकाम करने में कोई कसर नई छोड़ते थे।
स्वतंत्रता का सपना साकार: लगातार प्रयासों से ही महात्मा गांधी ने माँ भारती को 15 अगस्त, 1947 को पराधीनता की बेड़ियों से आज़ादी दिलाई।
मृत्यु: राष्ट्रपिता बापू की मृत्यु 30 जनवरी 1948 को गोली मारने की वजह से हुई। इस घटना को नाथूराम गोडसे ने अंजाम दिया था।
आज भी उनके विचार और आचरण हमारे लिए आदर्श है। हम सभी आज इस गांधी जयंती के मौके पर शत् शत् नमन करते हैं।
