भारतीय स्वतन्त्रा संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले, श्री तारकनाथ दास जी की आज जयंती है। तारकनाथ दास का जन्म 15 जून, 1884 में हुआ था। भारत देश को स्वतंत्र कराने के लिए इन्होंने बीच मे ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। अमेरिका मे इनके खिलाफ एक मुकदमा चला था जिस कारण इन्हें कैद की सजा सुनाई गई थी।
एक प्रसिद्ध स्वतंत्रा सेनानी
तारकनाथ का जन्म बंगाल के परगना जिले में हुआ था। वह एक बहुत ही होशियार विद्यार्थियों मे से एक थे। बचपन मे ही उनका मिलाप अरविंद घोष, सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी और चितरंजन दास जैसे क्रन्तिकारियो से हो गया था। इन्ही क्रन्तिकारियो को देखकर वह भी देश के क्रांतिकारी सिपाहियों मे से एक बन गए। बीच मे ही उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी और वह देश को स्वतंत्र कराने के कार्य मे जुट गए।
तारकनाथ दास का विदेश गमन
क्योंकि वह एक क्रांतिकारी बन चुके थे इसलिए अंग्रेज़ी पुलिस उनके पीछे पड़ गयी थी। पुलिस से बचने के लिए वह साधु का वेश बनाकर 1905 में जापान चले गए। उन्होंने अपना नाम ‘तारक ब्रह्मचारी’ रख लिया था। वहां वह एक साल रहे और फिर उसके बाद अमेरिका में सेन फ्रंसिस्को पहुंचे। वहां रहते हुए उन्होंने ‘फ्री हिंदुस्तान’ नामक एक अखबार शुरू किया जिसमें वह अंग्रेज़ो द्वारा किये गए अत्याचारों को दर्शाते थे। इसके अलावा उन्होंने वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से अपनी अधूरी छुटी पढ़ाई खत्म की। वहां से उन्हें पी एच डी की डिग्री मिली।
तारकनाथ दास पाए गए दोषी
जब पहला विश्वयुद्ध आरम्भ हो रहा था तब तारकनाथ अमेरिका से जर्मनी आ गए। जर्मनी से उन्होंने अपनी पार्टी ‘अनुशीलन पार्टी’ को हथियार भेजने का प्रयत्न किया। इस कार्य को करने के लिए उन्हें एशिया और यूरोप के कई देशों की यात्रा करनी पड़ी। जब वही काम करने वह अमेरिका गए तो उन्हें इस काम की भनक लग गयी। अमेरिका में उनके खिलाफ मुकदमा चला और उन्हें 22 महीने की कैद हुई।
कई संस्थाओं की हुई थी स्थापना
जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने कई ऐसी संस्थाए स्थापित की ताकि भारत मे रहने वाले बच्चे बाहर जाकर भी शिक्षा प्राप्त कर सके। कोलंबिया का ‘तारकनाथ दास फाउंडेशन’ और इंडियन इंस्टीट्यूट जैसी संस्थाएं उन्होंने स्थापित की। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में वह काफी समय तक प्रोफेसर भी रहे। 1952 में वह कोलकाता लौटे और विवेकानंद सोसाइटी की स्थापना की। 22 दिसम्बर, 1958 उनका देहांत हो गया।